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कविता

हमारी चाल चलन

मुंशी रहमान खान


दूसरों की चाल पर हम इतराते हैं।
हिंदू मुसलमान कुरवान हुए जाते हैं।। टेक

(छप्‍पय)

नृतक गान खंडन की पोथी अपनाते हैं।
अपने सद्ग्रंथन को पैर से ठुकराते हैं।।
थेटर नाँच दंगल में लाखों जुट जाते हैं।
देवालय और मस्जिद में कभी नहीं आते हैं।।
ऐसे कर्तव्‍य कर नहीं शर्माते हैं।।
दूसरों की चाल पर हम इतराते हैं।। 1
धर्मन के कर्मन को करते घबराते हैं।
यूरुप की चाल पर नारि को चलाते हैं।।
आभूषण और वस्‍त्रादि उनके पहिनाते हैं।
थेटर नाच जलसों में संग ले जाते हैं।।
ऐसे कर्तव्‍य कर नहीं शर्माते हैं।
दूसरों की चाल पर हम हतराते हैं।। 2
मिहनत औ मशक्‍कत से द्रव्‍य को कमाते हैं।
द्यूत सुरा नाचों में जाकर धर आते हैं।।
दान पुण्‍य करने में शीश को घुमाते हैं।
सज्‍जन की सीख पर सभा से उठ जाते हैं।।
ऐसे कर्तव्‍य कर नहीं शर्माते हैं।।
दूसरों की चाल पर हम इतराते हैं।। 3
हबशियों के नाम बाल बच्‍चों के धराते हैं।
धर्म कर्म छोड़ दाढी़ मूँछ को मुडा़ते हैं।।
जान बूझ धर्म को सिंधु में डुबाते हैं।
अपने आप पुरखन को नर्क में ले जाते हैं।।
ऐसे कर्तव्‍य कर नहीं शर्माते हैं।
दूसरों की चाल पर हम इतराते हैं।। 4
हमारी चाल चलन देख ख्रीष्‍ट हर्षाते हैं।
हम तो पूत हिंद के देश गुण गाते हैं।।
तज कुरीति सीख रीति ग्रंथ बतलाते हैं।
कसहु कमर धर्म पर रहमान समुझाते हैं।।
दूसरों की चाल पर हम इतराते हैं।
हिंदू मुसलमान कुरबान हुए जाते हैं।। 5

 


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